बाहर जगमगाहट,
भीतर घना तम,
त्यौहार की धूम में,
मन को चुभ रहा एक गम I
फटाको की गूँज
तो कही तबाही का मातम,
त्यौहार की धूम में,
मन को चुभ रहा एक गम I
घर से निकला मैं लेने त्यौहार का साजो सामान,
देखा सड़क पर बैठी थी एक नन्ही सी जान,
बेच रही थी वो फूलों की माला और रंगोली के रंग,
एहसास हुआ मुझे कितना तंग था उसका जीवन,
त्यौहार की धूम में,
मन को चुभ रहा एक गम,
बाहर जगमगाहट,
भीतर घना तम I
भीतर घना तम,
त्यौहार की धूम में,
मन को चुभ रहा एक गम I
फटाको की गूँज
तो कही तबाही का मातम,
त्यौहार की धूम में,
मन को चुभ रहा एक गम I
घर से निकला मैं लेने त्यौहार का साजो सामान,
देखा सड़क पर बैठी थी एक नन्ही सी जान,
बेच रही थी वो फूलों की माला और रंगोली के रंग,
एहसास हुआ मुझे कितना तंग था उसका जीवन,
त्यौहार की धूम में,
मन को चुभ रहा एक गम,
बाहर जगमगाहट,
भीतर घना तम I
4 comments:
Kaash iss andhiare ko sab dekh paate..
Bohot khub likha hai apne!
Dua karte hain ki woh mun ko chubta hua ghum jald hi mitt jaye.
@Alcina- Agar andhere ko sab dekh paate to andhera hota hi nahi.
Thanks.
awesome portrayal of festivity !!!!
@jyoti- penned what I felt
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