रिश्ते है नए ज़माने के ये छूटने लगे है
अहम् की दीवारों से टकराकर टूटने लगे है
झगडके गले लगना, ये बचपन के रिवाज़ थे
आजकल तो दिलों में शिकवे बेहिसाब है
अपनों को अपना कहने वाले पल में पराया कर देते है
ज़िन्दगी में कई रिश्ते हम यू ही ज़ाया कर देते है
सहेज के तो घर में कांच के बर्तन रखते है
रिश्ते तो वो ताकत है जिसकी हम लोहे से तुलना करते है
लोहा भी मिलावटी टूट के बिखरने लगा है
आजकल तो गैरों से ज्यादा अपनों से डर लगने लगा है
अहम् की दीवारों से टकराकर टूटने लगे है
झगडके गले लगना, ये बचपन के रिवाज़ थे
आजकल तो दिलों में शिकवे बेहिसाब है
अपनों को अपना कहने वाले पल में पराया कर देते है
ज़िन्दगी में कई रिश्ते हम यू ही ज़ाया कर देते है
सहेज के तो घर में कांच के बर्तन रखते है
रिश्ते तो वो ताकत है जिसकी हम लोहे से तुलना करते है
लोहा भी मिलावटी टूट के बिखरने लगा है
आजकल तो गैरों से ज्यादा अपनों से डर लगने लगा है
3 comments:
apno ne jab jab thukraya hai, tabhi parayo ka mol samajh aaya hai :)
apno ke zakhm bhar nahi paate, parayo ko apna kar nahi paate
nice one !!
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